नागराज का छिपा हुआ खजाना हिंदी कहानी


नागराज का छिपा हुआ खजाना 


एक किसान के परिवार में दो बेटे थे एक नाम था मोतीलाल और दुसरे का नाम था मनोहर बड़ा बेटा जितना कटल स्वभाव का था तो दूसरा बेटा उतना ही सरल स्वभाव का था और मोतीलाल की पत्नी उतनी ही चालक थी और मनोहर की पत्नी सहज और सरल स्वभाव की थी, और पिता के मर जाने के कुछ दिन बाद ही मोतीलाल ने जगह का बटवारा कर लिया, और बड़े बेटे ने अपने छोटे भाई को कुछ ही जमीन दी और सबसे ज्यादा जमीन मोतीलाल ने ले ली और तब मनोहर ने कहा की भैया आपका ये कैसा नये हैं, तब बड़े भाई ने कहा की तुम कुछ नहीं बोल सकते हो तब मनोहर ने कहा की येसी जमीन आप ने दी हैं मुझे जहाँ पर कुछ नहीं होता हैं, तब बड़े भाई ने कहा की तो में क्या करूँ चाहे कुछ हो या न हो ये तुम्हारी समस्या हैं और पिता जी की यही इच्छा थीं, तब छोटे भाई ने कहा की मुझे यकीं नहीं हैं, पिता जी येसा नहीं क्र सकते हैं, तब बड़े भाई ने कहा की अच्छा यकीं नहीं हैं तो ठीक हैं जब पिता जी मरे थे जो लोग वहां पे थे में उन लोगों को बुलाकर लता हूँ, तब तो बिश्वास होगा और सुन जो मैंने समझाया हैं, वो मान ले नहीं तो में मुझे आता हैं तुझे ठीक करना समझा तब मनोहर ने कहा की कमला सुना तुमने क्या कहा भैया ने तब कमला बोली हाँ सब सुन लिया हैं, मैंने तब मनोहर ने कहा की इतनी सी जमीन में क्या उगाऊंगा अब तुम ही बताओ की में क्या करूँ!


तब कमला बोली की देखो इतनी जल्दी हार नहीं मानते और अगर ऊपर चाह ले तो सब कुछ ठीक हो जायेगा, औ जो बंजर जमीन हैं वो भी फसल उगाएगी और तुम अपने भैया झगड़ा मत करो आखिर वो हम से बड़े हैं, और उस बंजर जमीन में मनोहर और कमला जाकर दिन रात खुदाई करने लगे और कठीन परिश्रम करने के बाद खेती होने लगी, और फसल बिलकुल सोने की तरह खिल उठी और फिर एक दिन बड़ा भाई जब अपने छोटे भाई की फसल देखने गया तो देखता रह गया और कहने लगा की आरे जिस जमीन में कभी फसल नहीं हुई हैं उसमे उसने फसल उगाली ये कैसे हो गया, और फिर बड़ा भाई घर गया और अपनी पत्नी से बताने लगा की उस मनोहर ने एसी फसल उगाई हैं, की जो की अच्छी जमीन में भी नहीं हो सकती हैं, और फिर मनोहर ने कहा की कितने दिनों से बदल छाये हुए हैं, लगता हैं की फसल काट कर घर में रख लूँ, तब कमला ने कहा में भी आपके साथ चलूंगी, तब मनुहार ने कहा की अरे तुम्हे कितने दिन से बुखार आ रहा हैं, और तुम कटाई करोगी नहीं तो घर में रहोगी तब कमला ने कहा नहीं में तो जाउंगी, और सुबह होते ही मनोहर ने कमला से कहा की में जा रहा हूँ काटने तब कमला ने कहा में भी चलती हूँ, तब मनोहर ने कहा की नहीं तुम्हे बहुत बुखार हैं, तुम घर पे रहो ठीक हैं, और मनोहर खेत चला गया और बहुत तेज से बारिश होने लगी तब मनोहर एक पेड़ के नीचे जा कर खड़ा हो गया!


तब उसी पेड़ के नीचे एक बहुत बड़ा साँप आ गया तब मनोहर ने कहा हे भगवान इतना बड़ा साँप आज तो में नहीं बचूंगा, और उस साँप ने एक घड्डे में गिरा दिया और साँप ने कहा की मेरा खजाना ले जाना चाहता हैं, और रात हो गई तब कमला सोच में पड़ गई की इतनी रात हो गई और आये नहीं तब कमला मोतीलाल के घर गई और मोतीलाल को बुलाया और कहा की देखो न भैया आप के भाई खेत की कटाई करने गए थे और अभी तक नहीं आये हैं आप जाकर देखो न मुझे बहुत तेज बुखार हैं, तब मोतीलाल ने कहा में उसे देखने जाऊंगा चलो जाओ यहाँ से तब कमला ने कहा की ये लोग मेरी मदद तो नहीं कर रहे हैं, अब मुझे ही जाना पड़ेगा देखने और कमला खेत में पहुँच कर अपने पति जोर-जोर से आवाज लगाती हैं, और जब उसी पेड़ के पास जाकर देखती हैं, तो वह साँप एक लकड़ी में फासा हुआ था, और फिर कमला ने उस साँप को बहार निकला तब साँप ने कहा की तुमने मेरी मदद की हैं, और तुम यहाँ पे इतनी रात को क्या कर रही हो!


तब कमला ने कहा की में अपने पति को देखने आई हूँ, वो सुबह से यहाँ पे कटाई करने के लिए आये थे, और अब तक घर नहीं गए हैं, में उन्ही को देखने आई हूँ, तब साँप ने कहा की यहाँ एक गड्डे में आदमी गिर गया हैं, देखो कौन हैं तब कमला ने आवाज लगाई तब मनोहन ने कहा की कमला में यहीं पे हूँ तुम मुझे बचाओ तब कमला ने साँप से कहा की क्या करूँ में तो साँप बोला की तुम इस पेड़ की जड़ को गड्डे में डालो और कमला ने पेड़ की जड़ को गड्डे में डाला तो मनोहर बहार आया और मनोहर अपनी पत्नी से कहने लगा की हम बर्बाद हो गए कमला सारी खेती पानी से नुकसान हो गई तब कमला ने कहा की तुम उदास मत हो हम फिर से कर लेंगे खेती तब साँप बोला की तो तुम मेरा खजाना लेने नहीं आये थे, तब मनोहर ने कहा की खजाना नहीं तो में तो अपनी खेती की कटाई करने के लिए आया था और बरिश होने लगी तो में इस पेड़ के नीचे छुपने लगा तब साँप ने कहा की तुम दोनों बहुत अच्छे हो और तुम्हरी पत्नी ने मेरी जान बचाई हैं!


तब साँप ने कहा की में तुम दोनों को कुछ इनाम दूंगा आओ मेरे साथ और साँप ने कहा की ले जाओ चाहे जितना सोना तब मनोहर ने एक घड़ा ले लिया तब साँप ने कहा की और ले लो चाहे जितने तब कमला ने कहा की नहीं हमें अब और नहीं चाहीए, तब साँप ने कहा की जाओ तुम खुश रहो